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Chudi Bazar Me Ladki

Chudi Bazar Me Ladki

चूड़ी बाज़ार मे लड़की
Publisher: Rajkamal Prakashan
Author: Krishna Kumar
ISBN: 978-81-26725-95-3
Binding: Hard Cover
Language: Hindi
Pages: 147
Published: 2014
Regular price ₹ 395.00
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" तर्क और तथ्य को आमने-सामने रख सहजता, सतर्कता और सघनता से बुना 'चूड़ी बाजार में लड़की' का वैचारिक पाठ भारतीय स्त्री की सामाजिक, सांस्कृतिक और नैतिक व्यवस्था पर क्लासिक कृति है। इस नैरेटिव को पढ़कर हम गहरे तक आश्वस्त होते हैं कि कृष्ण कुमार भारतीय मिथकों, प्रतीकों और परम्पराओं के बीच में से गुजरते हुए, मात्र एकतरफा दलीलों से नहीं, मानवीय अधिकारों से वंचित स्त्री को जिस चक्रव्यूह से बाहर लाना चाहते हैं, वह निश्चय ही उसके अस्तित्व के संघर्ष की पराकाष्ठा होगी। भारतीय परिवार में पति-पत्नी, पुत्र-पुत्री, बहन-भाई के आन्तरिक और सामाजिक सम्बन्धों को लेकर जो अन्वेषणीय संयोजन लेखक द्वारा प्रस्तुत किया गया है वह एक साथ समाजशास्त्रीय मूल्यों और मानवीय मनोभूमि की आन्तरिकता से व्याख्यायित है। स्त्री-विमर्श को लेकर हमारे यहाँ इस्तेमाल होने वाले चालू मुहावरों की जगह भाषाई परिष्कार और स्त्री का मूक आन्तरिक ध्वनि-संसार पाठ को आत्मीय छवि देता है। प्रचलित मान्यताओं से हटकर 'चूड़ी बाज़ार में लड़की' स्त्री-पक्ष को मंडित करता या उस पर सहानुभूति छिड़कता आख्यान नहीं। इस कृति की रचनात्मक संकल्पना और सर्जनात्मक रेंज चूड़ी बाज़ार के अँधेरे में बदरंग दड़वों के रसायनी घोल से गढ़ी गई चूड़ियों की खनक को अस्त्र शस्त्र और वस्त्र के शक्ति-गलियारों से जोड़ सकने की दक्षता रखती है...

स्त्री एक देह है और उसके सुखों की संकल्पनाएँ भी संस्थाबद्ध हैं। स्त्री के लिए एक अलग दृष्टिशास्त्र भी समाज ने रच दिया है। उसके अनुसार देह में यदि दिमाग, विचार शामिल हो जाएँ तो परिवार संस्थान में उथल-पुथल से समाज में अनर्थ होगा। पुरुष के भीतर नारी और नारी के भीतर पुरुष की पारस्परिकता के सिद्धान्त के अनुसार पुरुष और नारी का पृथक शारीरिक अस्तित्व भी एक बृहत्तर संरचना के भीतर रचा हुआ है। पर उसे शिक्षा, विचार और चिन्तन से दूर रख पारिवारिक संस्था ने नारी को सांस्कारिक सुख-साधन व्यवस्था का प्रतीक बना दिया है। विस्मयकारी है कि जिस शिल्प और शैली में पुरुष देह को उत्तेजित करती चूड़ी बाज़ार की खनक को समाजशास्त्रीय पड़ताल और मानवीय संवेदना के अन्तरसम्बन्धों की बन्दिश में लेखक द्वारा बाँधा-साधा गया है, वह भारतीय परिवार के संस्थान के आन्तरिक संस्कारी स्नायुतंत्र को उद्घाटित करती है।"

- कृष्णा सोबती

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