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Prakriti-Samaaj Series – Bihar

Prakriti-Samaaj Series – Bihar

प्रकृति समाज शृंखला- बिहार
Publisher: Eklavya
Author: Yemuna Sunny
Translator: Vijay Kumar
Illustrator: Kanak Shashi | Art work by : Trripurari Singh
ISBN: 978-93-48176-26-4
Binding: Paperback
Language: Hindi
Pages: 12
Published: March-2025
Regular price ₹ 80.00
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हमारे शिक्षा तंत्र में कई खामियों हैं, और साथ ही उसमें ऐसे कई संसाधन भी हैं जो बड़ी सफाई से उसकी तमाम रूड़ियों को बनाए रखने में मदद करते हैं। जिस प्रकार का मानचित्र अभी आपके हाथ में है वह इनमें से कई रूढ़ियों को लचीला बना सकता है।

मानचित्र क्या होता है? इस सवाल में स्कूली भूगोल का, और काफी हद तक शिक्षा का भविष्य निहित है। मानचित्र की पुरानी अवधारणा स्थानों की ठीक स्थिति दर्शाने और दिशाओं को निर्धारित करने की उसकी उपयोगिता पर केन्द्रित है। राजनैतिक इतिहास ने मानचित्र की इस मूल उपयोगिता को विस्तार देते हुए इसे समाजीकरण का एक सशक्त उपकरण बना दिया है जिसका इस्तेमाल क्षेत्र-आधारित राष्ट्र राज्य की अवधारणा को बच्चों के दिमाग में बिठाने के लिए किया जाता है।

मानचित्र किस तरह बनते हैं और किस तरह काम करते हैं यह जानने-समझने से बहुत पहले ही बच्चों का मानचित्रों से पाला पड़ जाता है। मानचित्रों द्वारा दर्शाई जाने वाली सीमाओं की रहस्यमयी ताकत के आगे शिक्षा झुक जाती है। यहाँ तक कि ये सीमाएँ इस पृथ्वी को भी हर समाज और राष्ट्र में मौजूद इन सीमाओं के संरक्षकों की तुलना में कम महत्वपूर्ण बना देती हैं। ऐसे में प्रकृति का संकट, तथा प्रकृति व दूसरे मनुष्यों के साथ मनुष्य के सम्बन्धों में तनाव की भयावह स्थिति शिक्षा से, बल्कि सर्वश्रेष्ठ प्रकार की शिक्षा से भी अछूती रहती है।

यही वजह है कि हमें मानचित्रों के बारे में बिलकुल नए अन्दाज़ से सोचना होगा। मानचित्र ऐसे होने चाहिए जो सामाजिक संस्थाओं को जोड़ते हुए चलें क्योंकि मनुष्य अपने बचपन से ही इन्हीं संस्थाओं में रचा-बसा होता है। किसी स्थान पर भौतिक मौजूदगी का सवाल बाद में आता है, और आज की दुनिया में तो इसका महत्व उतना है भी नहीं जितना अतीत में था। इससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है सामाजिक मौजूदगी जहाँ परिवार जैसी बुनियादी सस्थाएँ भी आर्थिक, राजनैतिक तथा सांस्कृतिक जीवन को संचालित करने वाली राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं से सीधे-सीधे जुड़ी होती हैं और उनसे प्रभावित होती हैं। ऐसे जुड़ाव को दृश्य रूप में दिखाने और उसकी चर्चा करने वाले मानचित्र अपने आपमें एक नई शुरुआत हैं। जब अनगिनत शिक्षक और छात्र इन मानचित्रों को हाथ में लेंगें और लाखों कक्षाओं में उपयोग किये जाएगे, तब इनकी शैक्षिक सम्भावनाएँ और अधिक खुलेंगी व विकसित होंगी

इस श्रृंखला की पुस्तिकाओं को पेश करते हुए मुझे गर्व और रोमाच का अनुभव हो रहा है। मुझे इस बात में जरा भी सन्देह नहीं है कि इससे शिक्षा की नई सम्भावनाएँ और नए परिदृश्य उभरेंगे जिनसे हमारी शिक्षा उस पारिस्थितिक संकट को समझने में सक्षम हो पाएगी जिसका सामना भारत ही नहीं पूरी दुनिया कर रही है। इसके अलावा, इससे शिक्षा के एक लक्ष्य के रूप में अमन के मायने समझने और उसे हासिल करने के नए रास्ते भी खुल सकेंगे।

कृष्ण कुमार

शिक्षाविद व भूतपूर्व निदेशक, एनसीईआरटी


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